Sunday, November 21, 2010

हिफाज़त



कुछ इस कदर की
उन्होंने हमारी हिफाज़त

न ओस में नहा सके
न अश्कों को बहा सके

न हवा संग डोळ सके
न लबों से कुछ बोल सके

न शाखों पर खिल सके
न मिट्टी में मिल सके

7 comments:

  1. वाह ... क्या बात है ... कमाल का लिखा है ...

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  2. hey, surprised to read you. your writings are very musical and touchable...keep it up..this post is to much sweet. welcome to my blog.

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  3. हर शब्द चुने हुए मोती के समान..... बहुत ही सुंदर रचना .....

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  4. bahut khoob ....man ko choo gayee aapkee ye rachana

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