तुम्हारे क़दमों की आहट
तलाशती फिर रही हूँ
बदल चुके मौसम में भी...
तलाश रही हूँ तुम्हारी खुशबु को।
की शायद ओस की किसी बूँद में
रेत पर ओंधे मुह पड़ी हुई पत्तियों के नीचे
वोगंवेलिया के उस झुरमुट के पीछे
या फिर ठण्ड से बचने की कोशिश में...
जलाई गयी टहनियों की उस गुनगुनी राख में
बची रह गयी हो तुम्हारी कोई चाह
कोई आह...
कोई एहसास
कोई आहट
कुछ तो हो...
जो तुम्हारे यहाँ होने का एहसास दिला जाए
और मै उस एहसास के सहारे
फिर से जी लूँ कुछ पल तुम्हारे साथ
क्योंकि तुम्हारे न होने पर भी
जीती तो हूँ तुम्हे
शायद उनसे ज्यादा जो है आसपास.
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