Tuesday, November 6, 2012





















इस राह पर चलते चलते 

आओ चलें 
सबकुछ भूल 
बाँहों में बाहें डाले 
कंधे पर सर टिकाये 
इस लम्बे से रास्ते  पर 

शायद इस दूरी को 
तय करते करते 
दूर हो जाएँ 
आपस की दूरियां 
तुम समझ सको मेरी 
मै समझ सकूँ
तुम्हारी मजबूरियां 

यूँ ही थकते संभलते 
गिरते उठते 
शायद संभलना 
और संभालना आ जाये 
सख्त होती रूखी टहनियों पर 
फिर से कुछ नमी आ जाये 

यूँ ही कदम मिलाकर 
साथ चलते चलते 
याद आ जाएँ शायद तुम्हे 
सप्तपदी के सातों वचन 
और मै तुम फिर हम हो जाएँ 
इस राह पर चलते चलते 

5 comments:

  1. सप्तपदी के वचन आपकी कविताओं से खुबसूरत थोड़े न हैं

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  2. शायद इस दूरी को
    तय करते करते
    दूर हो जाएँ
    आपस की दूरियां ... क्या कहने!!


    आपकी पोस्ट ने खासा प्रभावित किया ... बेहद लाजवाब कविता

    मेरी नई पोस्ट पर आपका स्वागत हैं ...http://rohitasghorela.blogspot.in/2012/11/blog-post_6.html

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  3. गहरा खयाल सुन्दर रचना

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  4. शायद इस दूरी को
    तय करते करते
    दूर हो जाएँ
    आपस की दूरियां
    तुम समझ सको मेरी
    मै समझ सकूँ
    तुम्हारी मजबूरियां


    वाह..बहुत खूब....

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