Friday, January 20, 2012

बारिश की नासमझी

बारिश की नासमझी देखो
भिगो गयी हर भीगा कोना

जो सूखा था, वो सूखा है
न आंसू न कोई रोना

रेशे उसके सख्त हो गए
जो था पहले नर्म बिछौना

झूठ किसी ने बोला ऐसा
सच का कद लगता है बौना

जो देखा करते थे पहले
झिलमिल रातें, ख्वाब सलोना

आंखे उनकी भूल गयी है
किसको कहती थी वो सोना

13 comments:

  1. Waah ...

    hamara koi blog dekha hai aapne kabhi ?

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  2. Waah... bahut hi achha likha hai aapne.. :)

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  3. बहुत ही सुन्दर भीगी-भीगी सी रचना.....

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  4. बहुत प्यारी रचना...

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  5. सुन्दर प्रस्तुति.
    बारिश की नासमझी अच्छी लगी.
    आभार.

    मेरे ब्लॉग पर आईयेगा,रंजना जी.

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  6. झूठ किसी ने बोला ऐसा
    सच का कद लगता है बौना
    प्रभावित करती रचना .....

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  7. बेहतरीन भाव संयोजन ।

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  8. सुन्दर प्रस्तुति.
    खूबसूरत रचना !

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  9. रेशे उसके सख्त हो गए
    जो था पहले नर्म बिछौना

    Bahut khoob ... ye jeevan bhi to baarish ki tarah hai ... kabhji narm kabhi sakht ..

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  10. Beautiful as always.
    It is pleasure reading your poems.

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