Friday, August 14, 2009

जन्नत

बहुत खुशकिस्मत है वो धूप ,
जो चूमती है मेरे घर के आँगन को …

बहुत खुशकिस्मत है वो हवा ,
जो फूँक मरकर उडाती है मेरे घर के परदों को …

बहुत खुशकिस्मत है वो बारिश ,
जो भिगोती है मेरे घर के फर्श , दीवारों और पेडों को …

क्योंकि ज़मीन पर जन्नत को चूने का मौका ,
हर किसी को नही मिलता .

2 comments:

  1. Very Nice Mam... Keep writing.. -Yash

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  2. soch ki jannat........yahi hai ...hausla ..

    alakh jali rahe

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