Tuesday, March 15, 2011



जो बरस कर थम चुका है
वो कही पर जम चुका है
सुर्ख गाढ़े से लहू सा
धमनियों में रम चुका है

दर्द देकर दूसरों को
कब किसी का गम चुका है
प्यार की मीठी नज़र पर
आसमान का सर झुका है

सूनी सी टहनी पर फिर से
फूल कोई खिल चुका है
चुप हैं वो बरसों से जैसे
होंठ कोई सिल चुका है

आसमान का चाँद तो
अपनी पहुँच में था नहीं
लहरों पर उसका चमकता
अक्स हमको मिल चुका है

5 comments:

  1. आसमान का चाँद तो
    अपनी पहुँच में था नहीं
    लहरों पर उसका चमकता
    अक्स हमको मिल चुका है

    ye panktiyan ek dum se dil ko chhoo gayee, bahut khub!!

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  2. सूनी सी टहनी पर फिर से
    फूल कोई खिल चुका है


    ज़िंदगी हर सुबह अंगड़ाई letee hai tabhee उम्मीदों के चिराग रोशन होते हैं
    jeene kaa mazaa poochhiye unse जिनके सर pe कफ़न होते हैं

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  3. आसमान का चाँद तो
    अपनी पहुँच में था नहीं
    लहरों पर उसका चमकता
    अक्स हमको मिल चुका है ....

    आपका ब्लॉग देख कर प्रसन्नता हुई। कविता बहुत सुन्दर और भावपूर्ण है।
    हार्दिक बधाई।

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  4. ... एक बार फिर ... हाथ पकड़ थाम लेती रचना ... धन्यवाद

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  5. सच उम्दा रचना ....

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