Thursday, January 28, 2010

गजलों के मौसम

गजलों के मौसम हमने भी देखे है
ख्वाब गुलाबी से हमने भी देखे हैं
पर मौसम तो मौसम है बदलेगा ही
सावन और पतझड़ हमने भी देखे हैं

जब ठंडी ठंडी सी लगती थी गर्मी
जब चुभ जाती थी फूलों की भी नरमी
चाँद झांक खिड़की से करता बेशर्मी
वो रेशम से दिन हमने भी देखे हैं

जब पाया क्या खोया क्या दिखता न था
जब एक नाम ख्यालों से मिटता न था
उड़ते थे हम पैर कही टिकता न था
वो खुशबु से दिन हमने भी देखे हैं.

9 comments:

  1. chhand mukt kavitayen achhi lagi... bhav ka samaavesh achha hai aur gahre sandarv me hain...


    badhaayee


    arsh

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  2. जब पाया क्या खोया क्या दिखता न था
    जब एक नाम ख्यालों से मिटता न था
    उड़ते थे हम पैर कही टिकता न था
    वो खुशबु से दिन हमने भी देखे हैं.
    बहुत सुन्दर शुभकामनायें

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  4. इस कविता का एक एक शब्द निःशब्द कर देता हैं यूँ लगता है एक एक शब्द मौसम को सहलाते हुए उसे महसूस करते हुए लिखा गया है |

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  5. वो रेशम से दिन हमने भी देखे हैं

    बहुत खूब...बहुत अच्छी रचना...बधाई...
    नीरज

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  6. जब ठंडी ठंडी सी लगती थी गर्मी
    जब चुभ जाती थी फूलों की भी नरमी...
    देखे तो हैं ऐसे भी मौसम ...
    आपकी कविता में फिर से साकार हो गए ...

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  7. Mausam to mausam hai...badlega hi......lo aa gaya fulon ka mausm...

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  8. Resham se din hon
    Resham si baatein
    Resham sa chanda
    Resham si raatein

    Rehmi andhere mein
    Dhule dhule sapne
    Kuchh apne khoye se
    Kuchh khoye apne

    Reham si saanson mein
    Resham se waade
    Kahan bhool paateen hain
    Rishtey wo aadhe

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